पिछले साल बेटी ने मैट्रिक पास किया। अच्छा लड़का मिल गया तो दो महीने पहले शादी कर दी। थोड़ा दान-दहेज देकर अच्छा घर मिल गया। लड़का भी इंटर पास है। तीन साल से हैदराबाद में नौकरी कर रहा है। बेटी अब अपने परिवार में खुश है।
ज्यादा पढ़ाने के चक्कर में पड़ता तो एमए-बीए पास लड़का कहां से खोजकर लाता। अभी दो बेटियों का विवाह और भी तो करना है। यह कहना है नावानगर प्रखंड के एक गांव में रहने वाले के एक किसान का, जो परिवार में बंटवारे के बाद मुश्किल से एक बीघा जमीन के मालिक रह गए हैं।
ऐसा सिर्फ किसी किसान पिता का सोचना नहीं है। ग्रामीण इलाके में ऐसी हजारों कहानियां मिल जाएंगी, जहां पहले पैसे की कमी और फिर शादी के लिए पढ़ा-लिखा लड़का ढूंढने और उसे दहेज देने के लिए पैसे की कमी के चलते बेटियों की उच्च शिक्षा रोक दी जाती है।
राजपुर प्रखंड के गांव के एक खेतिहर मजदूर हैं। उनके पास अपना खेत नहीं है। दूसरों के खेत पट्टे पर लेकर जोतते हैं। इसी से परिवार की गुजर-बसर होती है। पांच बेटियों में दो की शादी मैट्रिक पास करते ही कर दी। तीसरी इंटर कर रही है। उसकी शादी के लिए भी खोजबीन में लग गए हैं। इस बात की चिंता सता रही है कि पढ़ाने के लिए अगर इस बेटी को घर में रोककर रखा तो बाकी दोनों बेटियों की शादी में भी देर होगी।
चौसा प्रखंड के एक गांव की बहू बताती हैं, ”मेरे माता-पिता की मुझ समेत तीन बेटियां थीं। सबसे बड़ी मैं ही थी। मैं आठवीं तक ही पढ़ पाई थी। बाद में मेरी पढ़ाई छूट गई और शादी करवा दी गई। माता-पिता को अपनी जिम्मेदारी से जल्दी छुटकारा पाने की चिंता थी। ससुराल आने के बाद पढ़ने का माहौल नहीं मिला। हालांकि, मेरी छोटी बहनों को पढ़ने का मौका मिला। आज मंझली बहन कृषि विज्ञानी है और छोटी कालेज में पढ़ रही है। अगर पापा को मेरी शादी की चिंता न सताती तो शायद मैं भी आगे पढ़ पाती।”
बाल कल्याण समिति के सदस्य और किशोर न्याय परिषद के पूर्व सदस्य डॉ. शशांक शेखर बताते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बीच ऐसी चुनौतियां हैं। हालांकि, अलग-अलग वजहों से आए सामाजिक बदलाव का नतीजा है कि बीते दो दशक में बेटों के साथ ही बेटियों को पढ़ाने की ललक बढ़ी है।
शिक्षा के प्रति जागरूकता की यह रोशनी बिल्कुल आखिरी छोर तक पहुंच गई है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए स्थान सुरक्षित किए जाने से बेटियों की पढ़ाई रोक देने वाली मानसिकता घटी है। बेटियां जब पढ़कर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनने लगेंगी, तो यह समस्या खत्म हो जाएगी।